Diya Jethwani

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धारावाहिक..... ये दूरियाँ....भाग 3

अपने साथी के साथ एक नई मंजिल की उड़ान भरने के लिए छाया बहुत ज्यादा उत्सुक थीं ओर रोमांचित भी... । 


ये सफर था भारत से सीधे चीन की तरफ़... 
जी हाँ... 

चीन.... या फिर चाईना.... जिससे आज हर बच्चा बच्चा अच्छे से परिचित हैं... । 
एक मजबूत और शक्तिशाली देश..। 
एक विकसित और टेक्नोलॉजी में सबसे आगे देश...। 

छाया के जीवन की नई शुरुआत इसी देश से हो रहीं थीं...। 
अभिजीत चीन की एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता था...। अभिजीत सालों से वहीं रहता था..। उसे उस माहौल की वहां के खान पान, बोलचाल और मौसम की आदत हो चुकी थीं...। लेकिन छाया के लिए यह वक्त थोड़ा मुश्किल होने वाला था....। 
लेकिन छाया एक समझदार और हर माहौल में ढलने वाली स्वाभिमानी लड़की थीं...। उसने चीन के माहौल से जल्दी ही तालमेल बिठा लिया...। उसे तकलीफ हो रहीं थीं तो सिर्फ वहां की भाषा और खान पान से...। 
हम भारतीय जहां भी जाते हैं खुद का खान पान तो कभी भूलते ही नहीं हैं.... छाया भी वहां भारतीय खान पान बनाने लगी...। काफी समय तक सब नार्मल चलता रहा...। अभिजीत अपने काम में व्यस्त हो गया और छाया घर के काम काज में...। लेकिन कुछ महिनों में ही छाया के लिए ऐसे अकेले रहना थोड़ा दुबर होने लगा... । 

छाया अभिजीत से इस बारें में बात करतीं उससे पहले ही उसकी मुलाकात अंजली से हुई....। 

अंजली उसी बिल्डिंग की ऊपरी मंजिल पर रहतीं थीं... जिस बिल्डिंग में छाया रहतीं थीं....। एक दिन अचानक हुई ये मुलाकात गहरी दोस्ती में बदल गई...। 

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हाय....आप इंडियन हैं...? 

यस....आप भी इंडिया से हैं...? 

हाँ.... आप अभी शिफ्ट हुए हैं क्या..!! 

हां कुछ महीने ही हुए हैं.. ओर आप....!! 

Same as.... हमें भी थोड़ा टाइम ही हुआ हैं...। 

कितना अच्छा लगता हैं ना... विदेश में किसी अपने से मिलना...। 

हां.... वो तो हैं..। वैसे आपका नाम...? 

मैं छाया...। 

नाइस टू मिट यू.... मैं अंजली..। आर यू मैरिड..? 

यस.... अभी कुछ महीने पहले ही मेरी शादी हुई हैं.... 3rd feb. को.... 

अरे वाह.... क्या इत्तेफाक हैं....। मेरी 4th feb. को....। 

रियली.....!! 

हम्म..... लगता हैं हम दोनों की खुब जमेगी...। 

हाँ... मुझे भी ऐसा ही लगता हैं...।। 


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आगे की कहानी छाया की जुबानी... 


मेरी और अंजली की ये पहली मुलाकात थीं..। ये छोटी सी मुलाकात कब और कैसे इतनी गहरी दोस्ती में बदल गई... पता ही नहीं चला...। हम दोनों अपने अपने काम से फुरसत निकाल कर.... अब हर रोज़ मिलने ओर बात करने लगे...। अंजान देश में रहकर अपने देश की बातें करना दिल को बहुत सुकून देता था...। कभी मैं उसके घर तो कभी वो मेरे घर...। कभी मिलकर तो कभी फोन पर हम घंटों एक दूसरे के साथ समय बिताते थे...। कुछ दिनों बाद मेरी मुलाकात अंजली के पति रिषभ से हुई...। धीरे धीरे अभिजीत ओर रिषभ भी एक दूसरे से मिले...। रिषभ ने मुझे अपनी बहन बनाया था...। एक साथ इतने सारे रिश्ते मुझे मिल जाएंगे मैंने सोचा नहीं था...। अभी हम चारों का ग्रुप बन गया था....। हम विकेंड पर साथ घूमने जाते..। हर त्यौहार साथ में मनाते...। होली हो या दिवाली.... अब ऐसा लगता था की पराये देश में कोई हैं जिसके साथ हम अपने देश के त्यौहार मना सकते हैं....। मेरी जिंदगी में अंजली से मिलना कोई पहला इत्तेफाक नहीं था....। इत्तेफाक तो जैसे हमारी कुंडली में बैठ गया था...। 

अंजली से मिलने के कुछ समय बाद ही मैं प्रेग्नेंट हो गई थीं...। उस वक्त अंजली ने मुझे एक बड़ी बहन...एक माँ की तरह सहारा दिया था...। अब इसे इत्तेफाक ही कह सकते हैं की मेरी प्रेगनेंसी के चार पांच महीने बाद ही अंजली भी प्रेग्नेंट हो गई...। 

अब हम दोनों एक दूसरे का ख्याल रखने लगे....। हम दोनों के साथ साथ हमारे पतिदेव की भी आपस में बहुत गहरी दोस्ती हो गई थी..। 

एक दूसरे के साथ वक्त अपनी गति से बितता गया और 20 sep. 2015 को मुझे एक प्यारी सी बेटी हुई...। 
मेरी बेटी का नाम अंजली ने ही रखा.... नायरा....। 


पहली बार माँ बनने की खुशी क्या होतीं हैं वो तो शायद मैं कभी शब्दों में लिख ही ना पाऊँ...। कुदरत ने अगर औरत के जीवन में कुछ बेहतर लिखा हैं तो वो हैं उसका माँ बनना...। 
एक ऐसा सुकून... एक ऐसा अहसास होता हैं... जिसे कोई भी माँ लब्जों में बयां नही कर सकतीं...। 

नायरा के होने के बाद मुझे बेसब्री से इंतजार था.... अंजली की गोद में आने वाले नन्हें मेहमान का..। 

मेरी प्रेगनेंसी से लेकर डिलेवरी तक...अंजली और रिषभ भइया ने हमारी बहुत मदद की थीं..। नायरा को मुझसे ज्यादा तो अंजली ही संभालती थीं...। 

नायरा छह महीने की थीं.... जब अंजली ने भी एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया...। 

फूल जैसी कोमल और बहुत ही प्यारी सी गुड़िया.... आराध्या....। 


नायरा और आराध्या..... साथ में बड़ी.... साथ में खेली.. साथ में खाना.... साथ में हंसना.... साथ में रोना...। 

नायरा ने समझ आने पर सबसे छोटा बच्चा आराध्या को ही देखा था...। दोनों धीरे धीरे एक साथ बढ़ने लगी... मेरी और अंजली की तरह नायरा और आरु (आराध्या) भी बहुत अच्छी दोस्त बन गई....। 

दोनों साथ में खेलतीं और साथ ही एक ही स्कूल में जाने लगी...। हमारे ग्रुप में अब नायरा और आरु भी शामिल हो गए थे...। हम छह लोग ऐसे रहते थे जैसे एक ही परिवार के हो...। 

हमें जहां जाना होता था.. हम सब साथ ही जातें थे...। मैं अंजली से और नायरा आरु से दूर होने का कभी सोच भी नहीं सकते थे...। लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब हमारे इस साथ को ना जाने किसकी नजर लग गई... । 


आखिर क्या हुआ था जिसकी वजह से हमें अलग होना पड़ा... जानते हैं अगले भाग में...। 



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2 Comments

Milind salve

09-Apr-2023 12:09 PM

👍🏼👍🏼

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Gunjan Kamal

07-Apr-2023 05:15 PM

अपनों का साथ हो तो जिंदगी खूबसूरत हो जाती है लेकिन जीवन में ऐसे भी मोड़ आते हैं जो हमें एक -दूसरे से अलग कर देते हैं लेकिन इसके पीछे कुछ ना कुछ वजह अवश्य रहती हैं, आप की कहानी में देखना ये है कि इनके अलग होने की वजह क्या है? अगले भाग का इंतजार रहेगा आदरणीया 👌👏🙏🏻

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